Goldfish
क्या अमीरी थी बचपन की,
जब बारिश होती थी, छत के सब नाबदान प्लास्टिक बैग से जाम करके अपना खुद का तालाब बनाते थे,
फिर अपनी सब गोल्डफिश नेट से निकाल के एक्वेरियम में से बाल्टी में रख हौले हौले सीढ़ी चढ़ते थे,
छोड़ देते थे सब मछलियां पानी में और सर पे एक प्लस्टिक बैग पहेन के बैठ जाते थे नेट लेके,
चंद कागज़ की नाव भी बहा देते थे और कुछ खिलौनों के घर भी मुंडेर पे सजा देते थे,
मछवारे भी हम, तालाब भी हमारे, नाव हमारी, मछलियां भी और साहिल किनारे मकान भी अपने,
क्या अमीरी थी बचपन की।।
काश के फिर वही सुकूं की बारिश हो,
हम फिर जाम करदें वक़्त के सारे नाबदान,
चुन चुन के निकालें सुनहरी यादों की सारी गोल्डफिश ज़िन्दगी के एक्वेरियम से, और छोड़ दे नग्मों की छत के पानी में,
तेरे नर्म एहसास की एक प्लास्टिक बैग पहेन ले सर पे और बन जाएं अमन के मछवारे,
कुछ नाव भी पुराने खत खुतूतों की छोड़ें,
और मुताबकत का आशियाना भी बनायें साहिल पे,
काश के बचपन की अमीरी मिल जाये! -Ayman Jamal
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