दो बन्दे निकल पड़े थे,
दोनों आईआईटी से पढ़े थे।
चाहते तो अच्छे पैकेज पाते,
बैग्गेज बाँध देश से उड़ जाते।
मगर दोनी ने ज़िद करने की ठानी,
इनकी ज़िद ने पूरी होने की ठानी।
लड़खड़ाये..हिचकोले भी खाये,
मगर इन्वेस्टर भी इन्हें गिरा ना पाये।
एक अलग ही दुनिया बसाई,
उस दुनिया को YourQuote की शक्ल पहनाई।
कभी मनाली की वादियों में शरण पायी,
कभी गोआ किनारे जा कर अलख जगाई।
कितनो को भूला हुनर याद दिलाया,
कितनो को लिखने का हुनर दिलाया।
नये ज़माने का नया रेवोलूशन लाये हैं,
ये शब्दों को पिरोने की माला लाये हैं।
अभी तो दस हज़ारी है, मगर हर्ष भाई, आशीष भाई..
अब आगे लाखों की तैयारी है।
- साकेत गर्ग
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