आधी रात को आंख खुली,
मोबाइल पर फिर उंगलियां चली..
हाँ! अपने ही दिल की सुन कर,
कुछ शब्द लिखे फिर तुम्हें याद कर..
बयां किया जो एक सपना सुहाना,
बन गया इक रात का अफसाना..
फिर आधी रात को आंख खुली,
जैसे सपने में तुमसे थी मिली..
तुमने उनका जवाब दिया पूरा,
जो सवाल रह जाता था अधूरा..
बस अब और करीब ना आना,
इल्ज़ाम तो मूझपे लगाएगा जमाना..
अब जो आधी रात को आंख खुली,
इस बार सिर्फ हकीकत से मैं मिली!!
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