कहत कबीर सुनो भई साधो"
इंसानों की ख़ैर छोड़ो, मौसम के रुख की बात करो
ठंडी के मौसम में रिमझिम सावन बरसे,
सफेद चादर की सेज ना सजे,
अब तपती धूप ताके है जमीं को।
कहत कबीर सुनो भई साधो"
पतझड़ के मौसम अब पत्तो की ना खनक गूजे,
नदी, तालाब सूखने का चारों दिशाओं में शोर मचे ।
ग्रीष्म ऋतु का क्या कहना,
अब तो सूरज देव अंबर से आग ही बरसाते हैं।
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