बचपन में
मेरी नन्ही हथेली से
गिरते मेरे चंद सिक्के,
सबसे ज्यादा महफ़ूज़
होते थे,
माँ के पल्लू की गांठ में,
जिसे कभी कोई
न खुलवा पाया
मेरी मर्ज़ी के बगैर....
और उसी पल्लू में
बांधा था माँ ने,
मेरे बचपन का वो हिस्सा
जो अक्सर
हाथ में बेलन देकर
झोंक दिया जाता है
चूल्हे में......
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