क्या मेरी पहचान महज़ एक मर्द तक सीमीत है?
क्यामुझे हक नहीं अपनी पहचान बनाने का,?
क्या मुझे हक नहीं खुल के जीने का,?
क्यों लड़कियों को महज़ अपनी हवस मिटाने का सामान समझा जाता है,?
बड़ी आसानी से कह दिया जाता है,,अब ज़माना बदल गया है,,औरतें भी मर्दों की बराबरी में हैं...,
बेशक ज़माना बदला,,मगर क्या? औरतें महफूज़ हैं,
जब एक लड़का किसी लड़की को छेड़ता है,,तो लोग कहते लड़की ने कपड़े अच्छे नहीं पहने हैं,
क्या सच में ज़माना बदला है,..?
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