मिले जब तेरी गैर मोजूदगी से
तो जाना क्या होते है गिले-शिकवे !
बेदर्दी से दर्द का हिसाब माँगा
जब मौसिकी बन फिजाओं में गूँजे गिले-शिकवे !
रफ्ता-रफ्ता रगों का लहू बना इश्क
फिर धड़कनों में धड़ल्ले से धड़के गिले-शिकवे !
रिश्तों में जरा ज़रिफ फासले बरतना "आफताबी"
पल में ज़हीरों को ज़ाहिर कर देते है गिले-शिकवे !
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