बरसों बाद घर लौटी तो
घर बूढ़ा हो गया था,
आँगन सूना,
बगीचा खामोश था,
पेड़ मायूस थे,
चिड़ियों का कोलाहल,
बंदरों का उधम ,
जाने कहाँ गुम हो गया था!
जर्जर सी दीवारें अपना दुखड़ा रो रही थी,
मजबूर सी खड़ी मैं
आँखों में आँसू छुपाए,
नज़ारा ये देख रही थी
क्योंकि घर ये अब पराया हो गया था
मालिक इसका कोई और हो गया था।
घर मेरा अब बूढ़ा हो गया था
बचपन की यादें समेटे
कुछ बोझिल सा हो गया था।।
घर मेरा बूढ़ा हो गया था।
मालिक भले बदल गया
पर दिल तो उसका हममें ही अटका था
यादों का हमारी उसके पास खज़ाना था
कोना- कोना आवाज़ लगा रहा था
यहीं रुक जाने की गुज़ारिश सी कर रहा था।
घर मेरा बूढ़ा हो गया था..
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