कहते है लोग प्रेम एक बीमारी ,
कीमत तो कृष्ण को भी पड़ी चुकानी।
वो अक्सर मिलना छिप- छिप वनो में,
हो गई अब वो हर एक याद पुरानी।
बैठा इंतज़ार में कृष्ण हर शाम नदी किनारे,
आए राधा और बस कृष्ण.. कृष्ण.. ही पुकारे।
बजाए बंसी की वो मधुर धुन,
जिसपर राधिका मग्न पैर थिरकाए।
गुम एक-दूजे मे खूबसूरत चांदनी भरी रैन गुजारे,
पड़े सूर्य की किरण सूरत एक-दूजे की तब निहारे।
न मिली राधा जब पल - पल कृष्ण अश्क बहाए,
जीवन संगिनी थी रूकमणी बस यही सोच के घबराए।
लाज,धर्म, कर्म से भी बड़ी जिम्मेदारी कैसे निभाए,
लाखो गोपिया थी दीवानी......
फिर भी बस अपने एक प्यार के बंधन मे न बंध पाए।
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