अर्सों बाद जो खुद से मिलें तो थोड़ा घबरा गएं,
वजूद पूछने लगा अरे तुम इधर कैसे आ गएं?
क्या टूटीं है कुछ ख़्वाहिश़ें या कोई छोड़के चला गया?
क्या बात है जो तुम इस नाचीज़ के इतने करीब आ गएं?
बड़ी तल्ख़ी थी आज उसकी भी लिहाज़-ए-पेश़गी में,
उसकी वो बेशुमार नाराज़गी देख हम सकत्ते में आ गएं।
हां कि जायज़ थे उसके हर इल्ज़ामात हम ही निकलें मतलबी,
आज जो आईने से मुख़ातिब हुएं तो अपने आप से श़रमा गएं।
भटकते रहें दर-ब-दर,हम ढूंढते रहें इक आश़ना दिनभर,
पर जैसे ही रात हुई घूम-फिरके उसीकी चौखट पर आ गएं।
ये सच निकला कोई अपना नहीं,जहां में सिवाय अपने,
ये बात भी मुझे 'वक्त' और मेरी 'गलतियां' हीं बता गएं।
-