इंसान जब बेसहारा, लाचार होता है तब
मैंने फुतपाथ को पनाहगार होते देखा है।
जब किसी भूखे की देखता है नम आँखें
तब मैंने इसे अंदर ही अंदर रोते देखा है।
मंदिर मस्जिद बाँट देते हैं इंसानियत को,
मैंने इसे इंसानियत को संजोते देखा है।
दुःख ,भूख लाचारी से परेशान हर कोना,
मैंने इसे दुनिया गरीबी की होते देखा है।
कल आएगाँ बदलाव,बदल जाएगाँ नज़ारा,
मैंने रोज़ रात इस उम्मीद में सोते देखा है।
©अंजलि
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