वह बेवक्त सा एक वक्त ही था जो बीत गया....
अरे वो राही, क्यों तोड़ता मारोरता हैं ख़ुद को उसके यादों मे...
क्यों कुछ लम्हों के लिये खोता है, खुद का आज और कल...
क्यों ना वो राही तु मान लेता-
"ज़िन्दगी के कुछ पन्ने जो सबसे हसीन थे, वो कभी दाग भी बन सकते है"
क्यों ना वो राही तू मान लेता, वह वक्त बेवक्त ही था जो बीत गया...
क्यों ढूंढ़ता नहीं खुद को वो राही तू आज के पन्नो में...
बेवक्त अगर वह वक़्त, वो राही, वह वक़्त तेरा होता तो आज वो बस यादों मे ना होता बल्कि तेरे आज में भी होता...
क्यों ना खुद को संभाल कर, राह तू आज का चुनता है
"इससे पहले की आज, कल की राह चुन ले"
क्यों ना वो राही तू चुनता है खुद को 'इस वक्त' को
क्यों नहीं तू मान लेता, वह बेवक़्त वक़्त ही था जो बीत गया...
"क्यों ना तू दाग छोर, चाप छोड़ने की ओर बढ़ता है!!!"
क्यों ना वो राही तू अपनी राह चुनता है...!
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