मैं वो लिख सकूं,जो समझ सको,
जो तुम समझ गए,वो लिखा नहीं
जो मिला मुझे,वो है खो दिया,
जो है खो दिया,वो मिला नहीं
शिकवे भी थे, शिकायत भी है
फिर भी तुमसे,मगर गिला नहीं
ये जो चोट है, तो ये दर्द है,
एक ज़ख़्म है,जो सिला नहीं
शजर से मेरे, तो पत्ते झड़ गए
तू वो दरख़्त है,जो हिला नहीं
यूं चमन में तो, अब बहार है
क्यों फूल मेरा ही खिला नहीं
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