मैं हर पल मर-मर कर, जीवन जीना सीख रहा हूँ।
मैं पागल सी ज़िंदगी को, जी कर मरना सीख रहा हूँ।।
डूबी है ज़िन्दगी मेरी, कोई बेनाम सी जंग में।
मैं गुजरी हुई हयात में साँसें भरना सीख रहा हूँ।।
लड़ते-लड़ते ज़िन्दगी से, मेरे पर भी टूट गए थक कर।
मैं बिना परों, बेख़ौफ़ हवा में उड़ान भरना सीख रहा हूँ।।
गुमनामी सी छाई है, इस पहचान भरी दुनिया में।
मैं जान-बूझकर अब, अंजान बनना सीख रहा हूँ।।
पहचान बनाते-बनाते ही, अपनी पहचान खो दी मैंने।
मैं बेगानी सी दुनिया में, अब पहचान बनाना सीख रहा हूँ।।
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