जाने क्यूँ
कुछ ख्वाहिशें है कैद, मेरे दिल के अन्दर, जाने क्यूँ |
बंद आँखों से देखती हूँ, सपने अपने अन्दर , जाने क्यूँ |
काश वो सपना सच होती, मैं लोगों के बीच खड़ी होती |
सुनने मेरे जज़्बातों को, लोगों की भीड़ जमी होती |
आशाएँ देने की जो उनको, आस सी है जाने क्यूँ |
कुछ ख्वाहिशें है कैद, मेरे दिल के अन्दर, जाने क्यूँ |
छिप जाती है ये हुनर कहीं, जब ख्याल आता लोगों का |
आज भी क्यूँ असर है उनकी, कही हुई हर बात का |
सहम जाती हूँ मैं याद कर, उन पलों को जाने क्यूँ |
कुछ ख्वाहिशें है कैद, मेरे दिल के अन्दर, जाने क्यूँ |
ठोकरें खाइ है अब तक, इन लोगों की, बातों से |
फिर भी लड़ी हूँ, हर बार अपने, हालात और जज़्बातोंं से |
पर रुकना कभी सीखा नहीं इन मुश्किलों से जाने क्यूँ |
कुछ ख्वाहिशें है कैद, मेरे दिल के अन्दर, जाने क्यूँ |
वो लोग जो हर पल कहीं, मेरे रास्तों को रोकते थे |
चलती जब भी हौसलों से, आगे आकर टोकते थे |
उन मुश्किलों से सीख कर, इतना संभल पाई हूँ मैं, जानें क्यूँ |
कुछ ख्वाहिशें है कैद, मेरे दिल के अन्दर, जाने क्यूँ |
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