बेबाक परिंदा
वक्त तो अभी भी नहीं मेरे पास, कहीं दूर मेरा ठिकाना है।
मैं बेबाक परिंदा हूँ, मुझे ऊंचाईयों तक जाना है।
हवाओं के जोर से, फिर कहीं गिर जाता हूँ।
मुश्किलों की ठोकर से, फिर बिखर जाता हूँ।
दर्द कितना भी हो पर, मंज़िल मेरा आशियाना है।
मैं बेबाक परिंदा हूँ, मुझे ऊंचाईयों तक जाना है।
कमियों को देख, हर कोई छोड़ जाता है।
नासमझ कह, मेरा हौसला तोड़ जाता है।
मुश्किलों में कोई नहीं, पर कामयाबी पे ज़माना है।
मैं बेबाक परिंदा हूँ, मुझे ऊंचाईयों तक जाना है।
जानता हूँ आगे रास्ते की मुझे, बिल्कुल भी खबर नहीं।
सीखूंगा अनजान रास्तों पे चल, मुश्किलों की मुझे फिकर नहीं।
खुद की कमियों से लड़ना है, किसी और को नहीं दिखाना है।
मैं बेबाक परिंदा हूँ, मुझे ऊंचाईयों तक जाना है।
दो पल चल लोग, फायदा ढूंढते हैं।
पर कामयाब लोग, हर पल में अनुभव चुनते हैं।
फायदा तो दो पल का है, पर अनुभव एक नित्य खज़ाना है।
मैं बेबाक परिंदा हूँ, मुझे ऊंचाईयों तक जाना है।
Pritam Singh Yadav
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