डरती हूँ मैं, बहुत डरती हूँ,
पहले डरती थी अंधेरों से,
जंगलों से, जानवरों से,
अब डरती हूँ इंसानों से,
अपने ख्वाबों से,
एहसासों से...
डरती हूँ कि ये कहीं टूट ना जाए,
एहसास कहीं छूट ना जाए,
मन हारा है,
कोई भी इस दायरे में टिकता नहीं,
दर्द कोई मिटता नहीं...
डर है मुकम्मल दिल में
एक अरसे से..
उम्मीद के साथ अब कोई दिखता नहीं.!!
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