विधार्थी...
यदि विधार्थी सा संघर्ष हो तो बोलो तुम कहाँ तक टिक सकोगे ....
सर्दी हो या गर्मी हो उठ जाते है नियमित रूप से सबेरे वही किताबों के पुराने पन्ने खंगालने
कपकपाती सर्दी मे भागने लगते है अपने गुरुकुल की ओर
यदि विधार्थी सा संघर्ष हो तो बोलो तुम कहाँ तक टिक सकोगे ....
करता है सालों साल तपस्या एक नौकरी के खातिर
बताओ ऐसा धैर्येवान कहाँ होगा
माता छूटी पिता छूठा छूठ गया संसार उसका
बस गया एक नौकरी के खातिर किसी पराये शहर में
यदि विधार्थी सा संघर्ष हो तो बोलो तुम कहाँ तक टिक सकोगे ....
पहला निवाला जो उसने खाया, कहीं नमक ज्यादा तो कहीं मोटी रोटी याद आ गई माँ के हाथ के खाने की झलक पड़ा आँख से आँसू
यदि विधार्थी सा संघर्ष हो तो बोलो तुम कहाँ तक टिक सकोगे
माँ ने मनाई नही दिवाली दीप जलाये उसने खाली
क्योंकि अब उसका बेटा आता नही शहर से गाँव
फस गया शहर की बेरंग हवाओं में अब उसे अपने शहर के रंग नही दिखते
यदि विधार्थी सा संघर्ष होता तो बोलो तुम कहाँ तक टिक सकोगे ....
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