Dil hai mera yaa falak hai koi.. Hain abr is par bhi to chaaye rehte... Ashk khul kar bas kabhi baraste nhi hain.. Zakhm-e-jigar hum bhi hain chupaye rehte..
आरजू ना थी इस दिल कि फलक तक जाने की दूसरों की महबूब देख , सितारों को छोड़ पूर्णिमा की चांद से दिल बैठा , लेकिन कमबख्त तुम्हारी सीधी नज़र ने तो कोई बात न की , लेकिन ये सादगी भरी आदों पर नज़रों को तिरछी कर अब क्या कहे छोड़ो...!!!