खाली कमरे अक्सर बहुत कुछ कह जाते है
अधूरे सपने और बिखरे रिश्ते याद दिलाते है..
बेजान चीजें भी अक्सर चीखने लगती है
इंसानों सी वो भी हमसे वक़्त मांग लेती है..
मेज़ पे रखी किताबें अपने अकेलेपन पर रोती है
जिन रिश्तों के खातिर उन्हें छोड़ा, उनका हश्र देख हंसती है..
दीवार पर टंगी घड़ी, आगे बढ़ने को कहती है
दूसरी ओर तस्वीरें, हमे अतीत की ओर खींचती है..
कोने में जमी धूल, उड़ने को बेताब होती है
तोड़ सारे बंधन, नया आशियाना ढूंढती है..
खामोश कमरों में, हवाएं भी बातें करती है
बिन बोले ये अक्सर, जिंदगी की सच्चाई बयां कर जाती है..
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