टांगों पर चलने वालों को,
हांथों पर चलना नहीं आता।
बिन नैन संभल कुछ चलते हैं,
नैनों को संभलना नहीं आता।
बड़े हुए, छूटा बचपन,
बच्चों सा बहलना नहीं आता।
कल्पना की तश्तरी खाली है,
बादल पर टहलना नहीं आता।
कस चुके नज़रिए के सांचे से,
मूरत से निकलना नहीं आता।
दुनिया समझी कमजोर उन्हें
ताकत में ढलते देख लिया,
बाकी मिट्टी के बर्तन है,
टूटते हैं, ढलना नहीं आता।
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