आज नींद नहीं मेरीे आंखों में,
मेरे प्रिय नहीं मेरी बाहों में।
सोचा था सज संवर कर उन्हें लुभाएंगे,
खफा हुए प्रियतम को मनाएंगे।
तड़पता छोड़ चले गए हमें,
जाते-जाते कुछ न कह गए हमें।
हम साथ जाने को कहते रहे,
वो सुनकर भी अनसुनी करते गए।
सोच विचार में हम जागते रहे,
सारी रात नयनों में काटते रहे।
कैसे उनसे दिल की बात कहते,
ज़िद करके कैसे उनसे सब कहते।
लोगों की नज़रों में हम सयाने हो गए,
पर असलियत में सब को क्या पता,
हम रेगिस्तान में खिले हुए,
कैक्टस के फूल से हो गए।
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