नहीं नहीं मुझे तुम्हारा वो सम्मान नहीं चाहिए।
न ही वो बेड़ियॉं यानि परवाह चाहिए।।
तुम्हारे वो नियम, वो कायदे,
जो तुमने मुझे सुरक्षित रखने के लिए बनाए,
नहीं चाहिए तुम्हारी वो सुरक्षा।
जो पूजन योग्य मूर्ति बना दिया तुमने
वह आदर सत्कार भी नहीं चाहिए,
और बराबरी.....
वो तो तुमसे मैं कर ही नहीं सकती,
क्यूंकि प्रकृति हूॅं मैं, जन्म दिया है मैंने तुम्हें,
यदि दे ही सकते हो तो आज़ादी दे दो,
खुली हवा में साॅंस लेने की आज़ादी,
ख़ुद को पवित्र साबित न करने की आज़ादी,
माॅं सीता बन अग्नि परीक्षा ना देने की आज़ादी,
क्या दे सकते हो तुम?
तुमसे ही अपनी आत्म रक्षा न करने का कारण,
क्या दे सकते हो मुझे?
"मुझे कुछ भी दे सकने के" अपने उस सामर्थ का त्याग,
क्या दे सकते हो?
मुझे बस "मैं" होने की आज़ादी
क्या दे सकते हो?
मुझे बस मेरे अस्तित्व की आज़ादी।।
माण्डवी पाण्डेय
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