आज इस पल यही ठहर जाओ,
ये नहीं कहना कि मैंने रोका नहीं ---
खुद ही तो आजाद किया है तुम्हें,
कैसे फिर बंधन में बांधू ?
सोचती हूं पिंजरे में कैद पंछी में तो सभी कि दिलचस्पी होती है।
कभी कोई आज़ाद उड़ते पंखों की खुशबू से इश्कमिजाजी करके तो दिखाये.....
आसार है अक्श के तेरे अब भी मुझमें;
बस आरज़ू नहीं दिल के आईने में बहार की !!!!
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