मैं सनातनी हूँ।
हृदय में राम बसते हैं मेरे।
मैं भी देवालय जाकर ,
पूजा-पाठ करता हूँ।
जलाभिषेक करता हूँ,
चंडी पाठ पढ़ता हूँ,
और राम नाम का जाप करता हूँ।
यही तो संस्कृति है हमारी।
हम इस सभ्यता के निर्माता हैं।
किंतु आज मुझे बड़ा अचरज होता है।
राम नाम उद्घोष हर गली में होता है।
देश का प्रत्येक बालक जय श्री राम बोलता है।
राम-राम कहने में कोई बुराई नहीं है।
लेकिन राम के नाम से दूसरे संप्रदायों,
पर कटाक्ष करना क्या उचित है ?
विडंबना तो ये है ,भक्ति लेशमात्र भी नहीं है।
जय श्री राम का प्रयोग हम अपने,
निजी स्वार्थ के लिए करने लगे हैं।
प्रत्येक मंच पर जय श्री राम का नारा लगाना,
क्या न्यायसंगत है ?
शिक्षण संस्थानों में राम नाम की जुमले बाज़ी क्या
तर्कसंगत है ?
क्या इतना ही है हमारे लिए राम के नाम का महत्व ?
— % &किसी को भी राम नाम का अर्थ ज्ञात नहीं है।
किसी को भी राम की मर्यादा से सरोकार नहीं है।
अपने अहं को शांत करने का ये सूत्र बना डाला है।
जय श्रीराम के शंखनाद का विगुल बजा डाला है।
अरे ! कुछ शिक्षा लो राम के चरित्र से।
राम के चरणों में नतमस्तक तो हो जाओगे,
लेकिन क्या कभी उनके आचरण को तुम अपने जीवन में उतार पाओगे।
मर्यादा पुरुषोत्तम हैं वो, मर्यादा में रहते हैं,
उस मर्यादा के निर्वहन के लिए १४ वर्षों तक कष्ट सहते हैं।
क्या कभी तुम उनके चरणों की रज भी बन पाओगे ?
इस मानसिकता का त्याग करों, उठो , जागो,
राम के नाम का जाप करों।
न की उपहास करो।
--अभिषेक थपलियाल।
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