जो पेड़ वो घने है,
उनकी छाव में तो आराम लगते है।
हर दफा पतझड़ ने रौंदा है,
इनपर सपने नहीं आम लगते है!
पौधा बन उभरे थे एक वक्त,
अब तने पर मोटी सी छाल है।
इनके तो सूखे पत्ते भी,
उड़ती हवाओं के नाम लगते हैं।
मगर जो सो जाते थे छाओ में इनके,
इनके कत्ल भी उन्हीं के नाम लगते है।
वही बोने वाले हैं देवता, पेड़ो के,
अब कहते है ख्वाहिशों के मीठे आम लगते हैं।
सांसे तबाह है, ज़रा खुद से भी बेईमान लगते है।
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