उलझी हुई राहों में उलझी हुई मंजिल,
कुछ उलझे से हम हैं, कुछ उलझा हुआ ये दिल,
यूँ हकीकत में उलझे, कभी उलझन से सपने,
कुछ उलझन में हम हैं, कुछ उलझे हुए अपने..
कभी रिश्तों के उलझे हुए धागों में उलझे,
ये रस्मों के यूँ ताने-बाने न सुलझें,
वो सांसों की डोरी में यादों की उलझन,
जाने कब होगी इन तंग गांठों की सुलझन..
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