"कुछ ख़ास"
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मिट्टी सी रूह है मेरी,
नदी-सी है शीतलता।।
मन में है कुछ तमन्ना,
पूरे करने की है जिन्हें अटलता।।
कुछ ख़ास मिली है कोमलता,
भय के वाणी से मैं नहीं घबराता।।
रुख मोड़ कर चलूंगा मैं,
गर मन में हो अटल अखंडता।।
दिल थाम के चला हुँ मैं,
नहीं है दूर मंजिल मेरी।।
है रात गर काली तो,
सवेरे भी है बहुत अलौकिक।।
मंजिल को भूल कर नहीं जीता हूँ मैं,
कुछ ख़ास करने की चाहत रखता हूँ मैं।।
इरादें बनाये है तो सच कर दिखाना है,
यूँ तो मौत से सबको लड़ जाना है।।
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