क्यूँ इजहार मैं ना कर सका इक पाक से मोहब्बत का।
क्यूँ तुझसे मैं ये कह ना सका मैं दीवाना तेरी सोहबत का।।
मैं सबात सा इक शाम कोई ,तु वीणा की है रागिनी।
मैं भटकता सितारा हूँ ,तु नूर की है चाँदनी।।
तुम्हें बताना चाहता था पर सवाल मन में बहुत से रह गये।
क्या तुम मुँह मोड़ तो ना लोगे ये डर मुझसे चुप रहने को कह गए।।
कुछ इसरार रह गई बातें मेरी, आज कुछ लोगों को पता है।
मैं तभी चुप था बेनफश ये मेरी खता है।।
शायद इजहार कर देना चाहिये था वो अधूरी सी दास्तान का।
तो नमानूश ना रहती तुम अधूरे रिश्ते से अपने दरम्यान का।।
मुझे रश्क था जब तुम रकिब के साथ होती थी ।
कुछ होता था दिल में शायद जब तुम उसके लिए रोती थी।
मुझे रश्क था उसकी उँगलियों से जो तुम्हारी जुल्फों को संवारती थी।
मुझे रश्क था उसकी निगाहों से जो तुमको निहारती थी।
मैं आना नहीं चाहता बीच में, बस कुछ बात कहना मैं चाहता था।
कि इक आशिक था तेरे हुस्न का जो तेरी अदाओं पे मरता था।
इस नज़्म के सहारे मैं तुमसे इजहार करता हूँ।
तु ख़्वाब थी मेरी मैं तुमसे प्यार करता हूं।।
मैं बहकती मदहोश हवा तु ख़्वाब मेरी रगबत का।
क्यों इजहार मैं ना कर सका इक पाक से मोहब्बत का।
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