दिमाग़🧠
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मैं कोई क़िताब नही जो समझ सकती हो,
ये मैं भी जानता हूँ, तुम बदल सकती हो।
ज़िन्दगी का सवेरा बनकर आज जो आयी हो,
तो कल शाम बनकर रातों में ढल सकती हो।
मैं कोई खेल नही,जो खेल सकती हो,
जी भर जाए तो कहीं भी छोड़ सकती हो।
ये मैं भी जनता हूँ तुझसे मेरा कोई मेल नही,
जो उम्रभर इस नादान इश्क़ को झेल सकती हो।
-Prashant saameer— % &दिल❤️
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कहूँ गर हाल-ए-दिल अपना,
जबतक चाहो इस दिल मे रह सकती हो।
इज़ाज़त जब मेरे दिल ने दे ही दिया है तुम्हे,
एहसासों के पन्नों पर अपना नाम छोड़ सकती हो।
तेरे होने की तफ्तीश ना होने देंगे औरों को,
मेरे इश्क़ पर इतना एतबार तो कर सकती हो।
बेचैनियाँ जब बढ़ने लगे,दिल मद्धम मद्धम सुस्त पड़ने लगे,
बहती हवा में खुशबू बनकर,मेरी इन साँसों में पनाह ले सकती हो।— % &
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