माँ की गोद मे खेलती हुई बच्ची,
हैवानों के हाथ का खिलौना बन गई,
हर बार हिस्से मे तकलीफ ही क्यों,
क्या थी यही तकदीर उन मासूमों की,
कभी तो ए-जिंदगी,चाहिए थोड़ा सा दिलासा।
पहनकर इज़्ज़त का मुखौटा जी रहे हैं शान से,
सच है ये कि मर सी गई है हया,उनकी आँखों से आज,
एहसास बहुत ज़रूरी है अब,
उतर जाए उनकी हैवानियत का ये नशा।
आज़माने को एक मासूम का दामन तो खोज लिया,
फिर टूट गया एक माँ का,इस दुनिया से भरोसा।
बेबसी का हर आँसू,छलक कर अब ये कह रहा है,
जीने दो मुझे भी,न बनाओ हमें खिलौना...
न बनाओ हमारा यूं तमाशा।
-