वजुद ने पूछा परखा अन्दाजा मेरा.
भरा ज़ख्म फिर हो गया आधा मेरा.
मिठे लफ्ज खूब शातिर है देश में मेरे
अर्जा गैरत की, जान ना सकी ईरादा मेरा.
क्या खरीदूँ मै गिरवी रख के ए- खुदा.
जूते जैसा फटा जरूरत का लिफाफा मेरा.
भूख ने दम तोड़ दिया किनारे पे साहब
रैली के जैसा कहां निकला जनाजा मेरा.
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