हाँ, साहब मैं गंवार हूँ
अच्छा हुआ मैंने ऊँची ऊँची डिग्रिंया नहीं पाई है
उन बड़े-बड़े नाम वालों विश्वविद्यालय से
जहाँ सिखाई जाती हैं, चाटुकारिता
और किसी खास वर्ग के अर्थ के लिए
निरर्थक बातों को लोगों पर थोपना
हाँ साहब, मैं गंवार ही हूँ
मेरी डिग्रीया भी ख़रीदी नहीं गई है
मैं तो इसे छिना हैं, लड़कर और मरकर
मैंने सिखा हैं, लड़ना उन चाटुकार तुच्छे लोगों से
जिसे तुम्हारे सभ्य समाज में गंवारपन कहा जाता है
वक़्त का इंतेज़ार है
जब ख़ामोश हो जाएगी ये चाटुकारिताएं
और सुनी जायेंगी, लड़ी जाएंगी
गवारों की फ़ौज के संग-संग
लिखनें को एक नई धारा
मैं गंवार हूँ साहब
मेरी बातों पर ध्यान न देना
पढ़कर भी हैं, तुम्हें ख़ामोश ही रहना
असभ्य समझकर छूटेंगे तुम्हारे मन में हँसी
इस हँसी को देखता हूँ,
कब-तक हैं, तुम्हें बरकरार रखना
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