चित्रकार नही साहब,
केनवास नही कोरा काग़ज़ चाहिए,
रंग नही, ग़मो की स्याही चाहिए,
रहमत हैं उसकी, मुझ पर शायद
रंगीनियत नही चित्रों कि, लफ्जो की रूहानियत चाहिए।
लाज़मी है, बोलते हैं, चित्र चित्रकार के,
सुन सको तो, सुनो गहराई अल्फाज़ो की
कानों को, संजीदा ख़ुमारियत चाहिए।
रंगो की रौनक सही चित्रकार की शोहरत,
हमे तो बस दर्द की श्याह दवात चाहिए।-
तू है या नही क्या फर्क है,
हम तो तब भी तेरी यादों में मुस्कुराते थे,
ओर अब भी यादो में ही मुस्कुराते हैं।-
अपनी अपनी मंजिले सब की यहाँ ,
अपना अपना सफर सब का राही,
क्यों फिक्र करता है,राही,
मंज़िल चाहे दूर सही जरा #धीरज तो रख!!
जो तेरा खुद से ऐतबार डगमगाये,
ज़रा रुक, नजरें पिछे तो गुमा,
कहा से कहा तक आ गया राही,
तो बेशक़ मंजिल भी जूकेंगी
मंज़िल यू आसान होती तो,
तो कहा उसमे तेरी जान होती।
एक दिल मंजिल तो मिल ही जाएगी,
ऐसे ना जी जीवन राही,
उस दिन राहें ये बड़ी याद आएंगी।-
चलो आज लिखतें है, कविता कुछ कहानी सी,
चलो बताते है, बात नये तरीक़े से वही पुरानी सी।
राही गुमनाम सा, डरा सहमा सा,
खुद को खो चला वक्त की आंधियों में तिनके सा,
मिली उसे कुछ देर छाया, कविताओं के बाग़ान में,
आया माली बाग़ान का, बोले तू है तिनका नकारा सा,
जा उड़ जा, हट जा, बगिया है मेरी नायाब जैसे हीरा हो अनमोल सा,
तेरा क्या काम यहाँ फूलो में क्यों बैठा है लगता मुझको तिनका तू कांटो सा।
टूट गया राही, उड़ चला फिर वक़्त की आंधियों में अजनबी सा,
खोजे उत्तर इधर उधर, लगे जैसे हो मूर्खो सा,
मिली शरण, गुरु (सद्गुरु) की जब, पाठ सीखा जब योग सा,
ठहराव सा आया जीवन मे, राही अब लगता योगी सा।
अब ना होगी मुलाक़ात राही से, जो मिलना ही हो,
आ-जाना गुरु की शरण, सीखेंगे पाठ जैसे हो साथ जन्मों जन्मों सा।-
अब आदत सी बन गई हैं,
खुद को बिखरते देखने की,
बिखरे टुकड़े सम्भालने की।
हर मोड़ पर लड़खड़ाने की,
अब आदत सी बन गई है,
खुद को संभालने की,
प्यार वफ़ा, दोस्ती दुनिया,
अब आदत सी बन गई है,
आँसू आंखों में छुपाने की।
चलो अच्छा ही तो हैं,
किसी ओर की जरूरत तो नही,
अब आदत सी बन गई है,
खुद को संभालने की।-
खफ़ा नही जनाब किसी ओर से,
ये तो अपनी ही खताई है।
किसी औऱ के दिल से क्या ऊमीद रखे,
खुद का दिल भी तो चीज़ पराई हैं।-
यूं पर्दे राज़ के ना खोलो सनम,
बेपर्दा में सही तेरे अरमान भी होंगे सारे।
जो गलिया जो दीवारे गवाह थी राज़ के हमारे,
जो तू बोलेगा, बोल उठेंगे मेरी वफ़ाई की नुमाईश में सारे।
हा हालत तेरे हो या मेरे साथ नही अब हमारे,
पर यूँ बेपर्दा न करो, राज हमारे।
बातें तो ज़िन्दगीयो की हुई थी,
साथ ना सही यू पराए ना करो एहसास हमारे।-
समुन्दर से इक बूँद क्या निकाली,
ख़ुद को खुदा समझ बैठी।
बेशक़ समुंदर तो हर बूँद से था।
पर बून्द का क्या,
वो नादान खुद को सब कुछ समझ बैठी।
जब भूल कर खुद को ,खुद को पानी मान बैठी,
उस दिन फिर से सागर के दिल मे जा बैठी।
(Don't blame god, forget yourself and relly on him)-
लिखना चाहू भी तो क्या लिखूं,
तू ही बता तेरे बारे में क्या क्या लिखूं।
लिखू वो हँसते चेहरे की शोखियत,
या उन आँखोँ की रूहानियत लिखू।
तेरे संग जिये हर पल का एहसास लिखू,
या उस पहली नज़र की कहानी लिखू।
लिखना चाहू भी तो कैसे लिखू,
तू बता तेरे बिछड़न का गम कैसे लिखू।
तेरी हर कसम लिखू या
हर कसमों की परवानीयत लिखू।
हमने तो तुझे अब खुदा समझा, तारीफ में तेरी क्या लिखू,
लिखना चाहू भी तो तू बता ओर क्या क्या लिखूं।
तेरी हर अदा लिखू,
या हर अदा में मेरी ही हर खता लिखू,
लिखना चाहू भी तो तू बता, क्या क्या लिखूं।-
मेरा कद इतना बड़ा तो नही,
जो देश के जवानोँ को लिख सकू,
बस अर्पण है, हर एक पंक्ति,
बस चाहू में इतना, देश की जवानी लिख सकू,
नमन हर उस वीर को, भूल अपना घर,
जो देश के काम आया,
बस चाहू, हर जवानी देश की सोचे,
मैं देश के काम आ सकू,
फिर देश की जवानी लिख सकू,
करगिल हो या, हिन्द-ए-ताज
रहे बुलंद इरादे, हिंदुस्तान के,
हर नापाक कोशिश,निस्तोनाबूत कर सकू,
हर आँख जो उठे हिन्द की ओर, उसे औकात याद दिला सकू।
भूलो ना, भारत जन्मभूमि जिसकी,
सोचे हर वो जवान, हिंदुस्तान को फिर बुलंद कर सकू।-