सुन तेरी मुस्कान के मोती जितने ज्यादा ये बिखरे,
घटा, समुन्दर, दरिया, पर्वत ये उतने ज्याद बिखरे,
झिलमिल शबनम की खिल जाती लगे फलक आ उतरा हो,
भरे रोशनी नज़र ये तेरी दिये दूर तक जो बिखरे।
खिल जाता है रूप शहर का किरण रंग भर जाती है,
जादू गज़ब देखता हूँ मैं, हवा शोख बह ( flow) जाती है,
असर जेहन में छाने लगता फ़िज़ा महकती है सारी
हिले लवों की पंखुड़ियां जो नज़र से तू मुस्काती है।।
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