[ आस्था एक नैसर्गिक एहसास ]
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रहबर-ए-परवरदिगार
खुदा भी तू,
ईश्वर भी तू,
सुना है ज़ईफ़ों की,
किस्मत भी है तू |
बैठ कभी ना उम्मीदी में,
तेरा नाम जप लेता हूँ |
तू है तो पत्थर का,
फिर भी उम्मीद तुझसे हीं,
बेहिसाब कर लेता हूँ |
शिकायतें-मुरीद जो भी हैं ,
सब तुझसे ही कह लेता हूँ |
मिलती सुकून जब यूँ नहीं,
बस एक तेरी आस्था में,
खुशियाँ जहाँ पा लेता हूँ |
या खुदा तेरे दर पे हीं,
नूर-ए-ईमान पा लेता हूँ |
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