"निस्वार्थ प्रेम"
मैं मीरा हूँ मोहन की,
मैं जोगन हूँ कान्हाँ की,
मैं नहीं राधा जिसे क्रिष्ण के नाम से जुड़ने का मान मिला,
मैं नहीं रुक्मिणी जिसे अर्द्धांगिनी का स्थान मिला,
मैं वही मीरा हूँ जिसका प्रेम पागलपन कहलाया था,
भगवान से तुम्हें प्रेम कैसा यह सवाल दुनिया ने मुझसे किया था,
मुझे कोई आस नहीं थी मोहन को पाने की,
चाहत थी बस मोहन को अपने दिल मे बसाने की,
विष का प्याला पीकर मैं अपने मोहन की कहलाई हूँ,
नहीं आ सके मोहन मेरे पास तो क्या, विष प्राशन कर मैं अपने मोहन से मिल पाई हूँ,
त्याग, समर्पण और भक्ति का अलग रूप मैने बतलाया है,
निःस्वार्थ प्रेम का मतलब मैने ही तो दुनिया को सिखलाया है..!!
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