इस जिस्म में सांसे कम है हम-साए में शैतान नज़र आए,
मैंने देखा था हरा सब अब जलता हुआ लाल नज़र आए।
जैसे पहले भी गुजरा हूं यहां से साए चलते नज़र आए,
दहशत को पहचान जन्नत से लग़्ज़िश-ए-पा नज़र आए।
फ़िक्र-ए-फ़र्दा अब किसको है यहां सारे हरबे अपनाए,
अब खुदा भी क्या करता वो तो हमें इंसान थे बनाए।
ढाए है सितम हमनें खुद ये शैतान कहीं और से नहीं आए,
मेरे अंदर था जो वो मर गया अब सांस कहीं और से आए।
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