जब रात को एक लड़की अकेले चलती है
कुछ नजरें उसको ढूंढती हैं तो कुछ वह तलाशती है
सब परछाइयां बुरी नहीं होती वह जानती है
फिर भी संभल कर चलना ,सावधान रहना अपना फर्ज मानती है
द्रौपदी से थोड़ी बुद्धिमान हो गई है वह कृष्ण को याद कर खुद ही पहलवान हो गई है
बाहर निकलती है तो परछाइयां आज भी उभरती है पर अब अकेले चलने से वह नहीं डरती है
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