Dear Delhi
चारो ओर मचा कैसा शोर है
ज्यादा नहीं कुछ,बस धुआँ घनघोर है।
आँखों की ज्योति चली गयी या
गले को जकड़ा कोई पिचास है
खत्म हो गयी अॉक्सीजन की भण्डार है
या जा रहे हम मौत की ओर है
ज्यादा नहीं कुछ,बस धुआँ घनघोर है।
गलती मेरी तुम्हारी या सी.एम.-पी.एम. की
या कमबख्त पराली की कसुर है
दोष आरोप जिम्मेदारीयों का या
प्रत्यारोप और क्रोध का चर्चा जोर है
ज्यादा नहीं कुछ,बस धुआँ घनघोर है।
ऊँची इमारत और चाहिए तुमको या
गाड़ियाँ अभी भी कुछ कम है
पेड़ काटने की ख्वाहिश जिंदा है
या कारखाने लगाने की होड़ है
ज्यादा नहीं कुछ, बस धुआँ घनघोर है ।
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