शाम की सुनहरी तारीफ और सुबह का
मीठा वर्णन तो बहुत किया होगा,
क्या कभी दोपहर की हल्की तपिश
को अपने शब्दों में उतारा है,
सूर्योदय की ललिमा से मोहित
और चाँदनी रात में उल्लासित तो
कई बार हुए होगे,
क्या कभी दोपहर के नीले आसमान में
उस धुंधले चाँद को देख मुस्कुराया है ,
क्यों हमेशा परिभाषित चीजों में सुंदरता ढूंढते हो
कभी नए सिरे से नए नजरिए से अपने आसपास देखो
खुद को सुन्दरता की नयी परिभाषाएँ बुनते पाओगे।
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