कभी कोशिश की है दिन भर चुप रहने की
गर दिन भर बोलने की आदत हो तुम्हारी
मैनें की है,खामोश रहने की
बस लोगों को बिन बोले समझने की
कम्बखत दिल जो था मिरा
खामोश ही नहीं रह दिन भर उस दिन
लवों ने ताब मुझ से धीरे से कह
अगर हम तेरा साथ न दें हम दिन भर
तो जो तू कहता है न जिसे तेरी खुबसूरती
कम्बखत वो दिल तुझे जीने भी नहीं देगा
बेहीसाब जगह जो दी है उसने दर्द को अपने मकान में
कुछ तेरे हैं, कुछ तेरी अपनों के तो कुछ तेरी रूह के
तो आइंदा अब सोचना भी नहीं दिन भर खामोश रहनें को
फिर क्या हो तिरे इस दिमाग की हालत
जो दपत के रखता है तिरे दिल को
बस फिर हमें दोष न देना
-