मुश्किल से जहां में वो एक शख़्स मिलता है,
जिसकी रूह में हमें अपना अक्स मिलता है।
बात बस होती है जरा सहेजकर रखने की ही,
वरना हर किसी को सहरा में दरख़्त मिलता है।
कितने ही करीने से रखी हों यादें दिल में समेट,
हर याद पे धूलभरा इक क़बा सख़्त मिलता है।
मिलती है मुकम्मल खुशी भले एक पल को ही,
बुझती शम्मा को जैसे सुकूं-ए-रक़्स मिलता है।
खो देते हैं लफ्ज़ भी मुताला-ए-मियाज़ में लोग,
बेइल्म हैं घने सन्नाटे के बाद ही दश्त मिलता है।
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