कौन कहता है जाने वाले लौट आते हैं,
गुज़री सहर तो फिर कभी नहीं आती
इतना रोया हुँ की अब चुप हुँ तो चुप ही हुँ मैं,
देर तक अब हँसी नहीं आती।
ज़िन्दगी इस तरह से उठ के गयी है मेरी
साँस कम है लेकिन मौत भी नहीं आती।
उसकी आँखों में घर बनाये थे,
रास अब कोई सरज़मी नही आती।
बिछ गए थे जिस डगर पे सर ए राह होकर
कोई राह उस डगर से अब नही आती।
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