दरख़्त की डाल पर अब लद गया है
गुलाबी फूलों का, गुच्छा अलबेला।।
मधुबन में मिश्री सी धुन है घुल रही
आया है जबसे ,चिड़ियों का रेला।।
खिड़की खोल मैं रोज देखूं इनको
सूने बाग में सजा, ये सुंदरतम् मेला।।
बना रही हैं ये आशियाना रहने को
खुश है ये मन मेरा ,जो था अकेला।।
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