QUOTES ON #CURRENTSITUATION

#currentsituation quotes

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28 JAN 2021 AT 23:32

वो इक मेरे हाथों संजोया हुआ सपना था ..!
ख्वाब मुकम्मल न हुआ तो खता कैसी,
सारा दोष अपना था ...!
दुखती रग हरबार दुखायी अपनों ने ,
और मरहम लगाने वाला भी कोई अपना था..!

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6 AUG 2019 AT 1:42

"देहलीज़"
Dehleejein thi meri bhi jo paar maine na ki
Dekha fir wo to uss paar khadein hai arso se,
Thee intezaar me mai ki wo kab iss paar aayein
beet gayee kai patjhad kai saavan.
Lee karwat tab maine fir unke khatir
Fir kya Tab se ab tak bas jaljala hi jaljala.

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3 JUL 2020 AT 11:14

सोचा था कि हम पर दुःख हज़ार आयें,
ना तनिक भी विचलित होंगे हम।
पर हमारी वजह से किसी और को दुःख हो जाए,
ना रात भर सो सके हम।।।
(Bitter Truth of Life)

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16 FEB 2021 AT 21:13

बोलने वाला तो यह बोल कर चला जाता है
मगर
वह यह नहीं जानता कि ये बोल कर वो सामने वाला को कितना रुला जाता है ।।

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23 AUG 2021 AT 22:58

दिल के हर कोने में,
'दहशत' उसके नाम की...!
'दिल' मेरा 'अफगानिस्तान' सा,
और 'हरकत' उसकी 'तालिबान' सी...!!

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23 AUG 2021 AT 21:10

मेरे दिल पर भी, वो ऐसे ही कब्ज़ा कर रही है,
जैसे अफगानिस्तान पर तालिबान...!

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8 MAR 2020 AT 22:39

ହାରିଯାଉଥିବା ମଣିଷ ରହିଯାଉଛି,
ଲଢ଼ିବା ଭୁଲି ବଞ୍ଚିବା ଶିଖୁଛି ।
ପ୍ରଶ୍ନସବୁକୁ ମସ୍ତିଷ୍କର କୋଠରୀରେ
ବନ୍ଦ କରି ଅନ୍ୟର ଉତ୍ତରରେ ହଁ ମାରୁଛି ।
ଦେହର ଖୋଳପାରେ ଅତର ଲଗାଉଛି,
ହେଲେ ମନ ଭିତରେ ସ୍ୱପ୍ନର ଶବ ସଢ଼ୁଛି ।
ଚାରି କାନ୍ଥ ଭିତରେ ନିଜ ସହିତ ଲଢ଼ୁଛି,
ସବୁ ଠିକ୍ ବୋଲି ହଁ ରେ ହଁ ମାରୁଛି,
ହେଲେ ବିନା ଧୂଆଁରେ କିଛି ଜଳୁଛି ଆଉ
ସହର ସାରା ପୋଡ଼ା ପୋଡ଼ା ଗନ୍ଧ ବାହାରୁଛି ।

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17 APR 2020 AT 6:13

क्या लिखूँ???
क्या लिखूँ इस हाल में,
क्या अपने जहन के सवाल लिखूँ?
या चहुँओर दुनिया में फैला बवाल लिखूँ?
स्वयं का हँसता-खेलता परिवार लिखूँ,
या आजकल संक्रमण से उजड़ते घर-वार लिखूँ?
दुनिया की हाहाकार लिखूँ,
पसरी अर्थव्यवस्था का कोई समाचार लिखूँ?
किस देश की मैं बात लिखूँ,
रोज की बढ़ती गिनती पर अपने विचार लिखूँ?
मरीजों की चित्कार लिखूँ,
पीड़ामय उनकी अंतिम पुकार लिखूँ?
मज़दूरों के कंधों का भार लिखूँ,
या उन पर वक़्त की पड़ती मार लिखूँ?
डॉक्टरों और प्रशासन को आभार लिखूँ,
या बेवकूफों के उन पर हुए प्रहार लिखूँ?
किसी नेता की नीतियों की जय-जयकार लिखूँ,
जो रोक सके इस काल को, उसे प्रणाम बारम्बार लिखूँ।
हे ईश्वर! इतना बल दे, कुछ तेरा चमत्कार लिखूँ,
शीघ्र कोई उपचार हो संभव, तुझे कोटि-कोटि आभार लिखूँ!!

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4 OCT 2021 AT 12:54

चंचल मन कभी शांत न होए,
डगर-डगर भटक कही जाएं ,

जी ऐसा ललचाए ,कही सुख न पाए,
करे कोशिश हजारों ,कुछ हाथ न आए,

भटक-भटक सब कुछ खोए,
मृगतृष्णा के पीछे क्यों ये रोए,

बावला कभी चेन की नींद न सोए,
खुटने यूं टूटे-बिखरे फिर भी न ठहरे,

ज़िद्दी ये ऐसा होए ,
कभी सुकून न पाए।

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29 MAR 2020 AT 16:30

ये वक़्त अजीब है यह लम्हा क्यों नसीब है
न जाने क्यों सारे आलम का किस्सा ही एक है।

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