वो गुलाल अब शरीर पर गुनगुना सा हो गया है
रंगीन पसीना मेरा यू उसके शरीर पर गिरता,
रोशनी मे चमक्ता है सीप सा, मेरा बदन जैसे लहरो सा,और वो एक तट इंतजार मे बौछारो का..
उन करहाती चीखों का और खाट की चाल का,
अब एक ताल सा हो रहा है,
इस दोपहर बहुत कुछ उस चदर पे लाल सा हो रहा है, उसके आलिंगन मे अब एक राग सा हो रहा है..
हाफती तंडी सांसे उसकी मेरी कमर पे,
रोंगटे खडे कर रही है, मै उस झुरझुरी से उत्तेजित हो खाट पर यू बरसती हूं जैसे बादल फटता हो एकाएक,
वो भी बेसुद उस लय मे बिजली सा मुझे जकडता है, कलाई मेरी मरोड यू कसके मुझे भर लेता है,
संगम हो जैसे विपक्षी चुमंबको का...
यूही हम एक दूजे मे बसे रहते है कुछ देर
मै भी टांगो से उसकी टांगो को गिऱफत मे लिए,
एक दुजे को रोके रहते है कुछ देर
जैसे मानो सदियों की तडप हो मिटी,
इस बीरिश के बाद फिर सुखा होना है
यही शायद सोच,
इस लम्हें को गिरफत हम करे रहते है हम कुछ देर...
और नही बताउंगी उसके बारे मे,
गुलाल ही तो था कोई पक्का रंग थोडी,
जो चढा रहेगा,चंद लम्हे की बात थी,
चंद दिनो के लिए सना रहा...
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