*कविता :- रुक जाते है चलते - चलते*
खयाल है शामिल मन मे
चुभते कांटो से तन मे
मुश्किल हैं बचना बचते - बचते
रुक जाते है चलते - चलते
दे कोई घांव, वो भर जायेंगे
शब्दो के तिर, भर ना पायेंगे
मुश्किल हैं भूलाना भूलते - भूलते
रुक जाते है चलते - चलते
संवेरा आता तो जरूर है
रात की तन्हाई से वो भी मजबूर है
मुश्किल हैं ढलना ढलते - ढलते
रुक जाते है चलते - चलते
गिरे मोती हथेलीपर उसे निहारू
कोई है नहीं की जिसे पुकारू
मुश्किल हैं मिलना मिलते - मिलते
रुक जाते है चलते - चलते
कैसे संभालू दिल, रखकर उसपे हाथ
एक आँखो पे, एक कागज के साथ
मुश्किल हैं लिखना, लिखते - लिखते
रुक जाते है चलते - चलते
-