तलाश ले कोई महफिल यारों की भी ग़मे-दुनिया की तो यहां दुकान बहुत है। जिन्दगी जैसे तैसे कर गुज़र बसर सौदा मौत से किया तो नुकसान बहुत है। कैसे अदा होगा वो कर्ज़ यूँ मर कर माँ-बाप के तुझ पर अहसान बहुत है। करेंगें तुझे रो कर रुखसत, मुर्दों के वास्ते शमशान बहुत हैं। मत कर एतबार गैरों पर इतना, यहां लोगों की मीठी ज़ुबान बहुत है। संभल कर चला कर हर डगर यहां, इस शहर नकाबपोश इंसान बहुत है। तू कर सके कुछ तो नेकी कर इंसानियत यहां लहुलुहान बहुत है। लिये फिरते हो मंद मुस्कान लबों पर इस हंसी के पीछे निशान बहुत है।
ये रास्ते, कितनी तरफ खुलते हैं, कुछ सुलझे सुलझे, कुछ उलझे उलझे लगते हैं, कुछ गुमराह है खुद मंजिल से, कुछ मंजिल से जाकर मिलते हैं।। उफ! ये रास्ते कितनी तरफ खुलते हैं?
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