हमको हमारी ही, नजर लग गई
मेरी बाहों को कोई, कसर लग गई।
सुब से शाम होती नही थी
घड़ी मेरी की, बैटरी खो गई।
रूक गया है, जहां इक तरफ
हां-हां, करते ही हमसे ना हो गई।
भिगा हुआ, आंसूओं में उठा भी नही
मेरी डाकिए से, लड़कर, कहानी खो गई।
रात बीती नही, सब आंखों में है
हसते-हसते ही, मिरी हालत क्या हो गई।
बाजुओं से लगा, वो मेरा सबकुछ लगा
चार रोज थे हुए, था कुछ भी नही, सब ले गई।
-